हूँ मैं क्या जानना है अगर…

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हूँ मैं क्या जानना है अगर…
तो आसमा में उड़ते उन परिंदो से पूछो
अक्सर उन्होंने संग अपने मुझे उड़ते देखा है |

हूँ मैं क्या जानना है अगर…
तो आसमां में टिमटिमाते उन तारों से पूछो
अक्सर संग अपने उन्होंने एक नन्हे भविष्य को टिमटिमाते देखा है |

हूँ मैं क्या जानना है अगर…
तो डाल डाल फुदकती उस तितली से पूछो
अक्सर उसने संग अपने मुझे नए फूलों का रस चखते देखा है ।

हूँ मैं क्या जानना है अगर…
तो धुन छेड़ती उस बांसुरी से पूछो
अक्सर उसने अपनी धुन में खुद को खोते देखा है ।

हूँ मैं क्या जानना है अगर…
तो आसमाँ में चमकते उस चाँद से पूछो
अक्सर उसने संग अपने मुझे अपनी तन्हाइयों में डूबते देखा है ।

हूँ मैं क्या जानना है अगर…
तो धुन छेड़ती उस बांसुरी से पूछो
अक्सर उसने मुझे अपनी धुन में खुद को खोते देखा है ।

हूँ मैं क्या जानना है अगर…
तो हर दिन उगते उस सूरज से पूछो
अक्सर संग उसने मुझे कभी दमकते तो कभी ढलते देखा है |

हूँ मैं क्या जानना है अगर…
तो पहांड़ों से निकलते उन झरनों से पूछो
अक्सर संग अपने मुझे गिर कर भी एक नयी धारा बनते देखा है |

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